Friday, March 18, 2016

दर्शन बेज़ार का तेवरी संग्रह -‘ ये जंजीरें कब टूटेंगी ' + योगेन्द्र योगीराज

 दर्शन बेज़ार का तेवरी संग्रह - ये जंजीरें कब टूटेंगी

+ योगेन्द्र योगीराज
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    ‘अक़्ल कहती है न जा कूचा--कातिल की तरफ। सरफरोशी की हवस कहती है चल क्या होगा’, ऐसी ही कशम़कश के बीच सृजन हुआ कुछ शब्द रूपी अंगारों का, कवि के तेवरों से झड़ीं कुछ उल्काएं-उन्हीं अंगारों और उल्काओं की धधकती भट्ठी का नाम है-‘ये जंजीरें कब टूटेंगी।’’
आगरा जनपद के ग्वालियर रोड स्थिति रोहता ग्राम के निकट पंचगाई में जन्मे, आगरा में ही शिक्षित-दीक्षित हुए एवं अभियन्ता पद से सेवानिवृत्त हुए श्री दर्शन बेज़ार के ये तेवर तेवरीनामक काव्यविधा  के रूप में लोकार्पित हुए हैं। ग़ज़ल की शक्लोसूरत लिये आक्रोश व्यक्त करने का यह इंकलाबी तरीका ही शायद तेवरीबन गया।
अपनी इस कृति में दर्शन बेज़ार ने वर्तमान व्यवस्था तथा व्यक्तिशः दलितों-पीडि़तों-शोषितों और दमितों के मध्य सर्वतः क्रांति की दमित चिंगारियों को ज्वाला बनाने का आह्वान किया है। अंधे -बहरे निज़ाम के खिलाफ आमजन की विवशता को उकेरते हुए वे कहते हैं-
तेरे दुःख से किसे काम है, बोल न कुछ बहरा निज़ाम है
कौन सुनेगा तेरे घर की, गली-गली में कोहराम है।।
नैतिकता, मानवता, कर्तव्यपरायणता एवं सर्वोपकारी साहस आज लगभग हर व्यक्ति की चेतना से लुप्त हो गया है। मनुष्य की कथनी और करनी जमीन-आसमान की तरह दूरी बना चुकी है। अअधिसंख्य लोग बेशर्म-बेमुरब्बत हो गये हैं। ऐसा ही ख़्याल कवि दर्शन बेज़ार के आक्रोश भरे तेवर से छिटककर निकल पड़ता है-
एक अभागिन चीरहरण पर विलख-विलख कर चिल्लायी,
आँखें नीची किए उधर  से चले गये मुँह फेरे लोग।
कैसे जीवित बच पायेंगे जो निर्बल हैं-परबस हैं,
सिर्फ यही चर्चा करते हैं अब तो साँझ-सवेरे लोग।।
कवि दर्शन बेज़ार न केवल मानव की विद्रूपताओं को देखकर उद्वेलित होता है, बल्कि सर्वजनीन पृथ्वी माता की पीड़ा से भी आहत होता है-
सूखे ताल-तलैया, नदियाँ, रीती गागर, खाली डोल।
कब तक ये विद्रूप रहेगा धरती माता कुछ तो बोल।।
वसुंधरा  की गोद जैसे नैसर्गिक सन्तति के लिए छटपटा रही है, वैसे ही आधुनिक सभ्यता-संस्कृति की भेंट चढ़ चुके संयुक्त परिवारों के एकाकी, अवस, परित्यक्त एवं कुंठित बुज़ुर्ग अपने परिवारों के थोड़े से भी थोड़े प्रेम व सान्निध्य के लिए तरस रहे हैं। बुजुर्गों को बोझ समझने वाले नितांत भोगवादी स्वार्थी संतानों व परिजनों के सम्मुख उनकी विवशता को व्यक्त करते हुए दर्शन बेज़ार आधुनिक समाज से जैसे प्रत्युत्तर चाहते हैं-
उनके हिस्से में कुटिया का बस छोटा-सा कोना है,
बुड्ढ़े-बुढि़या क्या कर लेंगे जब बँटवारा होना है।
कवि दर्शन बेज़ार अनेक मसलों पर बहुत कुछ कहता है। जैसा देखा, जैसा पाया, जैसा भोगा वह सब अनुभव कवि की लेखनी में उतारा है। कवि कहीं आवेशित है तो कहीं विवश, कहीं रुदित है तो कहीं आशान्वित, कहीं अतिशय वाचाल दीखता है तो कहीं मौन। उसने जैसे हर अनुभव को व्यक्त करने की पुरजोर कोशिश की है-
नाम था जिसके कभी वारंट जारी,
आज उसकी आरती सबने उतारी।
सालभर तक पुलिस से बचते रहे जो,
नगर में उनकी निकलती है सवारी।।
दूसरी ओर मज़लूमों को इंकलाब के लिए ललकारते हुए कवि दर्शन बेज़ार की तेज़ाबी क़लम यकायक तेज़ाब उगल देती है-
तू अपनी खुदी की हिफाजत में लग जा,
जमाने से खुलकर बग़ावत में लग जा।
क़सम है तुझे आज बहते लहू की,
हर एक जुल्म की तू खिलाफत में लग जा।।
यद्यपि दर्शन बेज़ार की इस काव्यकृति में कई जगह यथार्थ और सत्य को भावावेश में नकार दिया गया है तथापि कवि की गहन अन्तर्भावाभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सम्मुख उसको गौण माना जा सकता है क्योंकि आवश्यक नहीं कि कविता में वे सभी शास्त्रीय [तयशुदा] तत्त्व, गुण व सत्य अनिवार्य रूप से  समाहित हो जो विज्ञजनों को अपेक्षित है। इसलिये काव्य के दोषों की अवहेलना करके यदि अन्यान्य आधुनिक काव्य प्रयोगों को तुलनात्मक भावों की [कथनात्मक शैली] की विविधता पूर्ण विधाओं पर तौला जाये तो कवि अपनी अन्तर्भूमि -अनुभूत संवेदनाओं को तेवरी के माध्यम से अभिव्यक्त करने में सफल रहा है। इस काव्यकृति की यथार्थता इसके सम्पूर्ण अध्ययन एवं मनन से जानी जा सकती है।
तेवरी-संग्रह- ये जंजीरें कब टूटेंगी ' सार्थक सृजन प्रकाशन, अलीगढ़ से प्रकाशित शब्द-सुमन आपके हाथों में आने को आतुर है। कृति पठनीय व विचारणीय है। पुस्तक का कलेवर स्वयं को अर्थ प्रदान करता दिखाई देता है। वसंती चोले में सिमटे पृष्ठ आज़ादी के विस्मृत जुनून के वासंती उत्साह का प्रतीक हैं तो सादगी पूर्ण मुखपृष्ठ पर लाल रंग में श्रंृखलाबद्ध  व्यक्ति किसी बलिदानों  का  तुनक मसीहा या समाज की मुक्तिदायिनी करुण प्रतीक्षा का संकेत है।
संक्षेप में सारांशतः कवि दर्शन बेज़ार अपनी इस कृति के द्वारा हमेशा जाने जाते रहेंगे। उन्हीं के शब्दों में-
सींखचों को देखकर तू हो न यूँ भयभीत रे।

आग उगले लेखनी कुछ इस तरह रच गीत रे।।

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